ऐसा हाकिम है मेरा



ऐसा हाकिम   है   मेरा जख्म  निराले   देगा
मुझको   अहेसान मे   मलबुस  निवाले देगा
रोज़ कुछ सोचके कागज पे बनाता है चराग
रोज़  वो  कहेता  है  सबसे   के उजाले देगा
हम तो निकले हैं सफर पर ये सफर ऐसा है
जो फकत  पाँव नहीं  दिल पे भी छाले देगा
एक वो  शेर  अता  कर मेरे   मौला  मुझको
जो    जमाने    मे  मुझे   चाहने  वाले   देगा
शायर सईद अख्तर 




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