किसने कहा के मेरा वतन ठिक नहीं है



किसने कहा के मेरा  वतन ठिक नहीं है
लेकीन तेरी नफरत का चलन ठिक नहीं है
मंदिर मे लोग फंस गये, मरकज मे छुपे है
लफजो का तेरे दोगलापन  ठिक नहीं है
हर बात मे जो झुठ का लेता है  सहारा
उस आदमी का चाल चलन ठिक नहीं है
है चोर तडीपार भी हाकिम बने हुये
ईस वास्ते हालात ए वतन ठिक नहीं है
कहना तेरा कुछ और है करनी तेरी कुछ और
मिठी है जुबां पर तेरा मन ठिक नहीं है
भुखे को जो इक वक्त की रोटी ना दे सके
लानत है ऐसे धन पे वो धन ठिक नहीं है
मंजर वो नजर आये के दिल बैठ गया है
पथरा गई है आंख बदन ठिक नहीं है
अख्तर तुझे ले जायेगा ये दारो रसन तक
बेबाकी से सच कहने का फन ठिक नहीं है
सईद अख्तर

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