नज्म-- मजदुर
गर्मी सर्दी या बरसात हो करे बराबर काम
इन्ही के हाथों मे है मेरे देश का सारा निजाम
वतन के मजदूरों को सलाम
मुश्कील मे जब दुनियां भर के लोग भी कांप रहें हैं
ऐसे मे लम्बी सङके ये पैदल नाप रहे है
भुक से झुलसे धुप से झुलसे पाँव मे पड गये छाले
आखं मूँदकर बैठ गए सरकार चलाने वाले
ईनकी हालत का सरकार के सरपर है इल्जाम
वतन के मजदुरो को सलाम
दो रोटी की खातिर भटके नगर नगर बेचारे
अपने घर को छोडके निकले छुटे साथ सहारे
तडप रहे है अपने अपने घर वापस जाने को
तरस रहें हैं ईनके बच्चे अब दाने दाने को
अंधी बहेरी राजनीत से हुये ना इन्तेजाम
वतन के मजदूरों को सलाम
खुन के आँसू रोती है अब कलमकार की रचना
मुश्कील लगता है ऐसे मे मानव धर्म का बचना
कैसे पहुंचे ईनके मुंह तक रोटी के दो निवाले
उसपे तमाशा करने लगे है टीव्ही मीडिया वाले
क्या होंगा जब ये कर देंगे देश का चक्का जाम
वतन के मजदूरों को सलाम ।
शायर सईद अख्तर
गर्मी सर्दी या बरसात हो करे बराबर काम
इन्ही के हाथों मे है मेरे देश का सारा निजाम
वतन के मजदूरों को सलाम
मुश्कील मे जब दुनियां भर के लोग भी कांप रहें हैं
ऐसे मे लम्बी सङके ये पैदल नाप रहे है
भुक से झुलसे धुप से झुलसे पाँव मे पड गये छाले
आखं मूँदकर बैठ गए सरकार चलाने वाले
ईनकी हालत का सरकार के सरपर है इल्जाम
वतन के मजदुरो को सलाम
दो रोटी की खातिर भटके नगर नगर बेचारे
अपने घर को छोडके निकले छुटे साथ सहारे
तडप रहे है अपने अपने घर वापस जाने को
तरस रहें हैं ईनके बच्चे अब दाने दाने को
अंधी बहेरी राजनीत से हुये ना इन्तेजाम
वतन के मजदूरों को सलाम
खुन के आँसू रोती है अब कलमकार की रचना
मुश्कील लगता है ऐसे मे मानव धर्म का बचना
कैसे पहुंचे ईनके मुंह तक रोटी के दो निवाले
उसपे तमाशा करने लगे है टीव्ही मीडिया वाले
क्या होंगा जब ये कर देंगे देश का चक्का जाम
वतन के मजदूरों को सलाम ।
शायर सईद अख्तर
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